सत्यान्वेषी भगवद् जिज्ञासु बन्धुओं !


हिन्दू, जैन बौध्द, यहूदी, ईसाई, मुस्लिम, सिक्ख आदि-आदि नाम धर्म के नहीं, अपितु धर्मोपदेशकों के पीछे भेदभाव-टकराव वाली मनमाने तरीके से स्थापित सम्प्रदाय के हैं । जबकि ऐसा (भेदभाव मूलक) करने-रहने को उनके अगुओं ने भी स्वीकृति नहीं दिया था । नि:संदेह यह सब भेदभाव मूलक साम्प्रदायिक स्थिति इन सबों के अपने-अपने अगुओं के खिलाफ भी है । ऐसे ही स्थिति को मिटाने के लिए ही इनके अगुओं ने आजीवन संघर्ष किया था । मगर अफसोस है कि ये लोग इस सत्य को समझते क्यों नहीं ?
सत्य-धर्म तो वेद, उपनिषद्, रामायण, गीता, पुराण, बाइबिल, कुर्आन, गुरुग्रन्थ साहब आदि-आदि सद्ग्रन्थों द्वारा समर्थित और भगवदावतारियों श्री विष्णु- राम-कृष्ण जी द्वारा संस्थापित और प्रचारित तथा भगवत् प्रेषित भगवद् दूत अथवा धर्मदूत अथवा तीर्थंकर-प्राफेट-पैगम्बर रूप महावीर जैन सहित चौबीस तीर्थंकरों, सिध्दार्थ (बुध्द), मूसा, ईसा मसीह, मोहम्मद साहब और नानक देव सहित दस गुरुओं के ईष्ट-अभीष्ट, परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म-अरिहँत-बोधिसत्त्व-यहोवा-गॉड-अल्लाहतऽला-एकॐकार-सत् सीरी अकाल रूप परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप अल्लिफ्-लाम्-मीम (काल् अलम्) रूप 'शब्द' (गॉड) रूप तौहीद रूप अद्वैत्तत्त्वम् रूप एकत्त्व रूप परमपुरुष-सत्पुरुष रूप सर्वोच्च शक्ति-सत्ता रूप 'खुदा- गॉड-भगवान्' को यथार्थत: जानना, साक्षात् दर्शन करना एवं बातचीत  करते-कराते हुये सत्प्रमाणों से प्रमाणित प्राप्ति-परख-पहचान तथा उन्हीं एकमेव एकमात्र 'परमप्रभु' के प्रति विशुध्द भाव से सर्वतोभावेन समर्पित-शरणागत होता-रहता हुआ 'दोष रहित, सत्य प्रधान, मुक्ति और अमरता से युक्त सर्वोच्च जीवन विधान ही वास्तव में ही समस्त मानवगण के लिए ही एकमेव 'एक' ही यही 'सत्य धर्म' था, है और रहेगा भी। एक बनें-नेंक बनें । यही सत्य है ।
अरिहँत को छोड.कर महावीर आदि तीर्थंकरों के पीछे जैन, बोधिसत्त्व को छोड.कर बुध्द के पीछे बौध्द, यहोवा को छोड.कर मूसा के पीछे यहूदी (इसा्रयली), गॉड को छोड.कर यीशु के पीछे ईसाई, अल्लाहतऽला-खुदा को छोड.कर मोहम्मद साहब के पीछे मुस्लिम, एक ॐकार-सत् सीरी अकाल को छोड.कर नानकदेव आदि इस गुरुओं के पीछे सिक्ख आदि-आदि बहुतायतत वर्ग-जाति जो स्थापित हैं, ये सभी धर्म नहीं, अपितु धर्म के आड. में सम्प्रदाय हैं ।
वर्तमान में भी गुरुओं-तथाकथित सद्गुरुओं के पीछे भी वैसा ही साम्प्रदायिकता के पूर्व की तरह ही प्रज्ञा-परिवार, निरंकार-परिवार, ब्रह्मा कुमार-कुमारी परिवार (ब्रह्मा परिवार), ओशो परिवार आदि-आदि स्थापित होना शुरु हो गया है जिस पर प्रभावी नियन्त्रण नहीं किया गया तो यही आगे चलकर वर्ग-सम्प्रदाय का रूप लेकर विकृतियों को जन्म देगा । वास्तव में किसी भी सम्प्रदाय मात्र में फँसने-रहने वाला कोई भी व्यक्ति न तो धार्मिक कहला सकता है और न ही अपने ईष्ट-अभीष्ट को खुश-प्रसन्न करते हुए अभीष्ट लाभ रूप मुक्ति-अमरता रूप मोक्ष को ही प्राप्त कर सकता है । यथेष्ट लाभ पाने के लिए भेद-भाव रहित होना-रहना अनिवार्य है ।
आप हिन्दू हो या जैनी, बौध्द हो या यहूदी, आप ईसाई हो या मुसलमान या सिक्ख हो या कबीर पन्थी ही हो, महत्त्व इस बात का नहीं कि आप सभी जाति, सम्प्रदाय, नीच-ऊँच, लिंग-वर्ग आदि भेद करके आपस में लड.ने-झगड.ने कटने-मरने में ही सारा समय, श्रम व शरीर ही समाप्त कर दें अपितु महत्त्व तो इसमें है कि जिस किसी भी प्रकार से परमप्रभु-परमेश्वर या पद-निर्वाण या बोधिसत्त्व या यहोवा या गॉड-फादर या अल्लाहतऽला या एक ॐकार सत्  सीरी अकाल या सत्पुरुष या परमपुरुष आदि नाम-नामित परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम्  रूप खुदा-गॉड-भगवान् रूप परमप्रभु की उपलब्धि (दरश-परश प्राप्ति-परख-पहचान) हो तो उन्हें प्राप्त कर ही लेना चाहिए क्योंकि श्री विष्णु-राम-कृष्ण जी सहित समस्त ऋषि-महर्षि, महावीर, बुध्द, इब्राहिम, इशहाक, याकूब, मूसा, ईसा मसीह, मोहम्मद साहब, नानक देव, कबीर आदि-आदि सभी की ही एक यह ही खोज-प्राप्ति-पहचान व प्रचार-प्रसार की ही धारणा रही है कि उस परमप्रभु परमेश्वर की प्राप्ति व पहचान हो जाय तथा मानव उनके शरणागत रहे । यही सभी का एकमात्र ध्येय व लक्ष्य था । यही मुझसे आप अपने ही सद्ग्रन्थ के सत्प्रमाणों के आधार पर जाँच-परख करते हुए प्राप्त कर सकते हैं ।
अत: सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस का कहना है कि वास्तव में जो सच्चा हिन्दू है, वह ही सच्चा जैनी भी है, जो सच्चा जैनी है, वह ही सच्चा बौध्द भी है, जो सच्चा बौध्द है वह ही सच्चा यहूदी भी है, जो सच्चा यहूदी है वह ही सच्चा ईसाई भी है, जो सच्चा ईसाई है वह ही सच्चा मुसलमान भी है, जो सच्चा मुसलमान है, वह ही सच्चा सिक्ख भी है, जो सच्चा सिक्ख है, वह ही सच्चा हिन्दू भी है, क्योंकि परमात्मा-भगवान्-अरिहंत-बोधिसत्त्व-यहोवा-गॉड (परमेश्वर)-अल्लाहतऽला और एक ॐकार सत् सीरी अकाल सत्पुरुष परमपुरुष भिन्न-भिन्न और पृथक्-पृथक् नहीं बल्कि सब के सब ही एकमेव 'एक' ही का अनेक नाम हैं । फिर भेद कहाँ और कैसे ?
भेद-भाव तो घोर अज्ञानता मूलक भरम है, जिससे भटकाव होता है और यह भटकाव ही सभी दंगा-फसाद, लूट-मार-काट का मूल है । सच्चा होने-रहने हेतु भेदभाव से ऊपर उठें । हम सभी 'एक' ही परमपिता की सन्तान हैं एक ही मालिक के सभी बन्दे हैं । आपस में ही एक ही परिवार के हैं । आपस में अपनत्त्व लायें, भटकाव से बचें, क्योंकि सच एक है एक रहेगा, शेष सब बकवास है । सच 'एक' अवतरित हुआ है, बकवासों का अब नाश है । सत्य को खुदा-गॉड-भगवान् को कोई अस्वीकार करके उसी के धरती पर कोई कब तक उससे हवा-रौशनी-पानी का लाभ लेता रहेगा ? मात्र तभी तक जब तक कि उसकी मर्जी-कृपा होती रहेगी ।
अत: हर किसी को चाहिए कि भेदभाव को भूलकर उस एकमात्र एकमेव एक 'खुदा-गॉड-भगवान्' को ही अपने ईष्ट-अभीष्ट के रूप में स्वीकार करें । आज एकमात्र आवश्यकता इसी की है और महत्त्व भी इसी में है । समय चूकने पर पछताना पड़ेगा-पछताना ही पड़ेगा । भेद-भाव छोडें । साम्प्रदायिक भाव को छोडें । उस परमप्रभु रूप खुदा-गॉड-भगवान् को आप मुझ सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस से प्राप्त करते हुए यथार्थत: जानें, साक्षात् दर्शन करें एवं बात-चीत करते हुए सद्ग्रन्थीय प्रमाणों सहित परख-पहचान करते हुये आप अपने जीवन को दोष रहित, सत्य प्रधान, मुक्ति-अमरता से युक्त सर्वोच्च-सर्वोत्तम-सर्वश्रेष्ठ बनावें । धर्म 'एक' है । एक बनें ! 'एक' रहे और नेक बनें! इसी में ही सभी का ही भलाई-कल्याण है । सोचें-समझें-चेतें-सम्भलें सब मालिक मर्जी या भगवत् कृपा ।
निन्दा-आलोचना अथवा
सत्य कथन रूप कर्त्तव्य पालन ?
कुछ सुशिक्षित उदारवादी बन्धुजनों का कथन है कि दूसरे की निन्दा-आलोचना की क्या जरूरत, केवल अपनी ही बातें रखी जाय ! ऐसे बन्धुजनों से मुझे यह कहना है कि धान के खेत में सघन घास यदि उग आया हो तो किसान से यह कहना कि घासों को न छेड़ा जाय--खाद-पानी दिया जाय--धान जो होना होगा, हो ही जायेगा--तो क्या घासों के बीच धान सही उपज दे पायेगा ? नहीं ! कदापि नहीं !!! खाद-पानी को घास ही ले लिया करेगा । इसी प्रकार गुलाब के पौधे में उगने वाले दोगलों के प्रति माली से यह कहा जाय कि उगने वाले दोगलों को न छेड़ा जाय--असल को खाद-पानी दिया जाय तो क्या दोगला जो है असल को फूलने-फैलने देगा ? नहीं ! कदापि नहीं !!! बल्कि दोगले असल को ही समाप्त कर देंगे । पुन: पुलिस प्रशासन से यह कहा जाय कि आप चोर-डाकू-लुटेरों-दुष्ट-दुर्जनों को न छेडें., घर-परिवार-धन- दौलत और सज्जनों की रक्षा करें, तो क्या ऐसा सम्भव है ? नहीं ! कदापि नहीं !! चोर-डाकू-लुटेरा-दुष्ट-दुर्जन सज्जनों के साथ-साथ पुलिस को भी चैन से नहीं छोडें.गे । इसलिये तथाकथित धर्मोपदेशकों के आडम्बर-ढोंग-पाखण्ड-धोखा-कपट-छलावा का पर्दाफास धर्म प्रेमी सज्जनों के समक्ष प्रकट-प्रस्तुत न किया जाय जो कि एक साथ ही हजारों-हजार पुन: हजारों-हजार की संख्या में हो-रहकर भगवत् प्रेमी-धर्म प्रेमी जनमानस को धोखा-घड़ी-कपट-छलावा करके धन-धर्म दोनों का दोहन-शोषण्- करने में लगे हैं । उनके इस कुकृत्य को करते रहने देते हुए सत्य-धर्म का संस्थापन- संरक्षण किया-कराया जाय तो क्या जनमानस को इसका सही-समुचित लाभ मिलेगा ? नहीं ! कदापि नहीं !!
किसी की निन्दा-आलोचना तो निन्दा-आलोचना तब होता है जबकि वह दोष-दुर्गुण-कुकृत्य उसमें न हो और झूठा दोशारोपण कर-करके निन्दा-आलोचना किया-कराया जाता हो । मगर किसी के धोखा-धड़ी-कपट-छलावा रूप दोष-दुर्गुण- कुकृत्य को जनमानस के समक्ष ईमान-सच्चाई से सद्ग्रन्थीय सत्प्रमाणों के साथ प्रकट- प्रस्तुत किया-कराया जाना क्या किसी की निन्दा-आलोचना कहलायेगा ? यदि यह निन्दा-आलोचना ही कहलायेगा तो सत्य-धर्म संस्थापक एवं संरक्षक होने के नाते जनमानस के प्रति ईमान और सच्चाई सेर् कत्ताव्य पालन क्या कहलायेगा ? नि:संदेह और निश्चित ही यह निन्दा-आलोचना नहीं बल्कि जनमानस के प्रति ईमान और सच्चाई से अपने सच्चे कत्तव्य का पालन है । जनता सच्चाई से परिचित हो-ऐसा होना ही चाहिए--अवश्य ही होना चाहिए । 
----सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 

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