गायत्री
छन्द मात्र में उध्दृत होने के नाते ॐ-देव
मन्त्र (ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।')
के अभीष्ट ॐ-देव को समाप्त कर उनके स्थान पर
झूठी व काल्पनिक देवी को स्थापित कर प्रचारित करना-कराना
क्या देव द्रोहिता नहीं हैं ? क्या देव द्रोही असुरता नहीं होता है ? क्या यह
मन्त्र देवी (स्त्रीलिंग) प्रधान है या
ॐ देवस्य (पुलिंग) प्रधान ? जब यह मन्त्र ॐ-देव (पुलिंग)
प्रधान है तब यह देवी गायत्री (स्त्रीलिंग)
कहाँ से आ गयी ? क्या प्यार पाने के लिए पिता
जी को माता जी कहकर बुलाया जाए और उनके फोटो-चित्र को स्त्री
रूपा बना दिया जाए ? यही आप सबकी मान्यता है ? यही 'देव संस्कृति' संस्थापन कहलायेगा ? जिसमें
मन्त्र के अभीष्ट ॐ-देव को ही समाप्त करके उसकी जगह पर झूठी
व काल्पनिक तथाकथित गायत्री देवी स्थापित कर दी जाए ? क्या
यह देव द्रोहिता नहीं है ? नि: संदेह
यही देव द्रोहिता और यही असुरता भी है ! क्या कोई भी मेरी इन
बातों को ग.लत प्रमाणित
करेगा ?
यहाँ
एक बात मैं अवश्य कह देना चाहता हूँ कि यह तत्त्वज्ञान जिससे 'सम्पूर्ण' ही सम्पूर्णतया उपलब्ध हो सके, वर्तमान में पूरी धरती पर ही अन्य किसी के भी पास नहीं है! यदि कोई कहता है कि मेरे पास ऐसा 'तत्त्वज्ञान'
है, तो जनमानस के परम कल्याण को देखते हुए
मुझे यह कहना पडेग़ा कि वह सरासर झूठ बोलता है । समाज को धोखा देता है।
अब यदि कोई मेरी इस बात को निन्दा करना, शिकायत करना,
नीचा दिखाना या अहंकारी होना कहे, तो
जनकल्याणार्थ मुझे आपसे यह पूछना पडेग़ा कि आप ही बताएँ कि सच्चाई यदि ऐसी ही हो तो
मो कहूँ क्या ? क्या समाज को धोखे में पडे ही रहने दूँ ?
समाज को सच्चाई से अवगत न कराऊँ? नही! ऐसा नहीं हो सकता !! ऐसा मुझसे कदापि हो ही नहीं
सकता !!! आप मिलकर तो देखें।
पुन:
कह रहा हूँ कि यह 'तत्त्वज्ञान' अन्य किसी के भी पास नहीं है! यदि कोई कहता है कि
मेरे पास है तो उसकी इस घोषणा को सप्रमाण
प्रैक्टिकली (प्रायौगिक रूप से ) भी
ग़लत प्रमाणित करने के लिए तैयार भी तो हूँ और इस बात का बचन भी तो देता हूँ कि मैं
स्वयं उपर्युक्त कथन को ग.लत प्रमाणित करने वाले के
प्रति समर्पित-शरणागत
हो जाऊँगा। मगर सही होने पर उसे भी समर्पित-शरणागत करना-होना होगा । सब सद्ग्रन्थीय आधार पर ही मनमाना कुछ भी नहीं ।
अन्तत:
कह दूँ कि वास्तव में मैं
किसी का भी आलोचक या निन्दक या विरोधी नहीं हूँ, अपितु
सभी का ही सहायक और सहयोगी हूँ । शान्तिमय ढंग से मिल बैठ कर सप्रमाण वार्ता कर
जाँच कर लें । मगर हाँ, सत्य बोलना मेरा सहज स्वभाव औरर्
कत्तव्य भी है, जो हमेशा
करता रहूँगा, चाहे किसी को बुरा लगे या भला ।
जीवन
को सार्थक-सफल बनाएँ ! भगवत् कृपा रूप भगवद् ज्ञान (तत्त्वज्ञान) को अपनाएँ ! मिथ्या-महत्वाकांक्षी
गुरुओं के पीछे नहीं, बल्कि खुदा-गॉड-भगवान् को पहले अपने आप 'हम' जीव-रूह-सेल्फ और आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-ज्योर्तिमय शिव सहित पृथक्-पृथक् तीनों को ही जान-देख साक्षात् बात-चीत करते-पहचानते हुए उन्हीं के प्रति ही समर्पित-शरणागत हों-रहें। इसी में जीवन का सार्थक-सफल होना है, अन्यथा नहीं । समय रहते समझें-बूझें-चेतें!
कहता हूँ मान लें,
सत्यता को जान
लें ।
मुक्ति-अमरता देने वाले परमप्रभु को पहचान लें ॥
जिद्द-हठ से मुक्ति नहीं,
मुक्ति मिलती 'ज्ञान'
से ।
मिथ्या गुरु छोड़ो भइया,
सम्बन्ध जोड़ो
सीधे भगवान से ॥
वास्तविकता
तो यह है कि मेरे पास एक ऐसा 'ज्ञान (तत्त्वज्ञान)' है जो परमसत्य है और जिसमें किसी की भी निन्दा-शिकायत
नहीं, अपितु सभी की ही यथार्थ स्थिति का खुलासा है । मैं यह
बार-बार ही कह रहा हूँ कि पूरे भू-मण्डल
पर ही मेरी किसी से भी कोई दुश्मनी-विरोध है ही नहीं । हाँ !
यदि विरोध है तो मात्र असत्य-अधर्म-अन्याय और अनीति से है । आश्चर्य है कि सभी का ही सहयोगी रहने पर भी कहा
जा रहा हूँ विरोधी । जो खुलासा है, उसे गलत क्यों नहीं
प्रमाणित किया जा रहा है ? मेरे द्वारा देय तत्त्वज्ञान को
गलत प्रमाणित क्यों नहीं कर दिया जा रहा हैं ? कर दिया जाता
तो मैं भी अपने को ही गलत मान लेता । किन्तु यह सत्य ही, परम
सत्य ही है तो कोई गलत प्रमाणित कैसे कर सकता है ? नहीं कर
सकता । सब भगवत् कृपा ।
सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी
परमहंस